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Title
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Vairagi
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Author
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Shri Arun Kumar Sharma
Shri Manoj Siddharth Sharma
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Language
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Hindi
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Publication Year:
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First Edition - 2020
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Price
|
Rs. 300.00 (free shipping within india)
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ISBN
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978-93-84172-09-1
|
Binding Type
|
Paper Bound
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Pages
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vi + 11 + 305
|
Size
|
21.5 cm x 14.0 cm
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buying instruction
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बाबा हँसते हुए चाय का कुल्हड़ मेरी और बढ़ाते हुए बोले - ले चाय पी। फिर बतलाता हूँ। कुछ पल सब कुछ शांत रहा बाबा चुपचाप चाय पीते रहे । उनके प्रसाद रुपी चाय को मैंने भी ग्रहण किया ।
फिर बाबा ने बतलाया - दो दिन बाद मेरा काशी से प्रस्थान का समय है और शरीर को त्यागने का भी। छहः माह तो लग ही जाएंगे गिरनार पहुँचते पहुँचते। दत्तात्रेय के चरणों में शरीर त्यागना है क्योंकि यह शरीर भी किसी और का है । कब तक किसी और के घर पर कब्ज़ा करके बैठा रहूँगा ।
बाबा की रहस्यमय बातें मुझे और उलझा रही थी। मैंने कहा - बाबा मैं आपकी बातें सुन कर उलझता जा रहा हूँ ।
बाबा हँसते हुए बोले - बेटा यहाँ शरीर मेरा नहीं है। यह गिरनार के एक नागा साधु का है। मेरा शरीर तो आज से सत्तर साल पहले छूट चुका है। गुरुदेव की कृपा से यह शरीर मिला यानि परकाया प्रवेश। यह सुनते ही मेरे शरीर में सनसनाहट सी दौड़ गयी। पूरा शरीर उस ठण्ड में भी पसीने से नहा गया । क्या मैं परकाया प्रवेश सिद्ध साधक के सामने बैठा हूँ ।
बाबा मुझे थपथपाते हुए बोले - बालक मनको शांत कर , सारी कथा बतलाकर ही जाऊँगा ।
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Title
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Kundalini Saadhana Prasang
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Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
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Language
|
Hindi
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Publication Year:
|
First Edition - 2018
|
Price
|
Rs. 350.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
978-93-84172-08-4
|
Binding Type
|
Paper Bound
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Pages
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v + 304
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Size
|
21.5 cm x 14.0 cm
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buying instruction
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गुरु जी बोले - अगर विचारपूर्वक देखा जाए तो मूलाधार से लेकर कंठ व मस्तक तक जो चक्रों की भावना की गयी है उसी में शब्द के स्फुट अक्षर निवास करते हैं। अगर वे वहां न होते तो वह स्वतः मन में नहीं आ सकते। हम लोग जिस भाषा में सोचते हैं उसके मूल में इक्यावन ध्वनियाँ हैं और इन इक्यावन ध्वनियों का स्थान मन में अवश्य है । विश्व की सभी भाषाओँ की ध्वनियों में सबसे ज्यादा ध्वनियाँ संस्कृत की मानी गयी हैं। चीन की ध्वनियाँ ज्यादा हैं लेकिन वे चित्रलिपि पर आधारित हैं। अक्षरों पर नहीं।
...
कुण्डलिनी साधना में सबसे महत्वपूर्ण स्थान नाड़ी का है। जिस पर समस्त साधना आधारित है वह है सुषुम्ना नाड़ी। सुषुम्ना नाड़ी के अंदर कुछ भी नहीं है। वह बिल्कुल रिक्त है। इसीलिए सुषुम्ना को योग में शून्य नाड़ी भी कहते हैं। शून्य का मतलब अभाव नहीं है पूर्णता है। सुषुम्ना नाड़ी के महत्व का पहला कारण यह है कि ये अधो लघु मस्तिष्क में स्थित सहस्त्रार से कुण्डलिनी के शक्ति केंद्र मूलाधार से जुड़ी है।
दूसरा कारण यह है कि कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर इसी नाड़ी मार्ग से सहस्त्रार में प्रवेश करती है। जहाँ संयोग शिव तत्त्व से होता है। जिसे सामरस्य मिलन अथवा सामरस्य भाव कहते हैं। तंत्र का यही अद्वैत सिद्धि लाभ है।
तीसरा महत्वपूर्ण कारण है इसी नाड़ी के द्वारा षट्चक्रों का भेदन होता है। जिसकी सहायता से साधक साधना में क्रमिक उन्नति करता चला जाता है।
चौथा कारण यह है की सुषुम्ना के साथ एक और नाड़ी है जिसे चित्रिणी नाड़ी कहते हैं। यह ज्ञान वाहिनी नाड़ी है। यह मूलाधार चक्र से निकल कर लघु मस्तिष्क के केंद्र को उस नाड़ी से जोड़ती है जो केंद्र से निकल कर आज्ञा चक्र में गुह्यनी नाड़ी से मिलती है। चित्रिणी नाड़ी ही एक ऐसी नाड़ी है जो अवचेतन मन को चेतन मन से जोड़ती है।
इस नाड़ी के माध्यम से कभी-कभी अवचेतन मन की अकल्पनीय शक्तियाँ अवचेतन मन की सीमा को लाँघ कर चेतन मन में अकस्मात् प्रगट हो जाती हैं। वह चमत्कार जैसा होता है।
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Title
|
Maaran Paatra
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Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Translator
|
Namrita Khanna
|
Language
|
English
|
Publication Year:
|
First Edition - 2017
|
Price
|
Rs. 300.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
978-93-84172-05-3
|
Binding Type
|
Paper Bound
|
Pages
|
ix + 47 + 258
|
Size
|
22.5 cm x 14.5 cm
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buying instruction
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----Excerpts Coming Soon----
----Need for English translation-----
It has been felt a great need to reach out to devotees not able to understand Hindi. Namrita Khanna, a great devotee of Shri Guru Ji, started putting her intense efforts for the phenomenal work of translating the great work of Gurudev Shri Arun Kumar Sharma.
Maaran Paatra in English is the result of that pious devotion and tireless efforts.
Hope all the devotees will get benefited in quenching their spiritual thirst.
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Title
|
Janm Janmantar
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Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
Shri Manoj Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
First Edition - 2017
|
Price
|
Rs. 250.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9789384172039
|
Binding Type
|
Paper Bound
|
Pages
|
vi + 250 Pages
|
Size
|
21.5 cm x 14.5 cm
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buying instruction
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जन्म-जन्मान्तर पुस्तक, जगत के अनन्त प्रवाह में बहती एक ऐसी युवती की मार्मिक कथा है, जो संसार में बार-बार जन्म लेती है अपने अधूरे वचन को पूर्ण करने के लिये। वह हर जन्म में छली जाती है कभी समाज के रुढिवादी बन्धनों से, कभी परिस्थितिवश, कभी अपनों के द्वारा।
बौद्धकाल से लेकर 21 वीं सदी तक उसका सात बार जन्म होता है। क्या वह अपने वचन को पूरा कर पाती है या फिर काल के प्रवाह में विलीन हो जाती है ? परिस्थितिजन्य दो प्रेमी अनजाने में जन्म-जन्मान्तर तक साथ निभाने का वचन देते हैं। अपने वचन को पूर्ण करने के लिये उन्हें संसार में बार-बार जन्म लेकर असीम कष्टों का सामना करना पड़ता है। क्षेमा, भुवनमोहिनी, अपराजिता, मणिपद्मा, विविधा, दीपशिखा और वर्तमान में सोनालिका तक सभी कथायें अत्यन्त मार्मिक हैं और भारत के बदलते समय को दर्शाती हैं।
छुट्टियाँ बिताकर नर्मदा के तट पर मित्रों के साथ फोटो लेती हुई सोनालिका का पैर फ़िसल जाता है और वह नर्मदा की प्रबल धारा में बह जाती है। होश आने पर खुद को घने जंगल के बीच एक झोंपड़ी में पाती है। यहीं से उसके जीवन में एक ऐसी घटना घटती है, जिसके कारण उसके जीवन की धारा ही बदल जाती है।
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Title
|
Kaalanjayi
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
First Edition - 2015
|
Price
|
Rs. 300.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9789384172022
|
Binding Type
|
Paper Bound
|
Pages
|
vi + 250 Pages
|
Size
|
21.5 cm x 14.5 cm
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buying instruction
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एकाएक बाबा कालूराम रुक गये और पलटकर गंगा की धारा की ओर देखकर बोले - कीनाराम देख कोई शव बहा जा रहा है। कीनाराम तत्काल बोले नहीं बाबा वह जिन्दा है। तो बुला उसे। कीनाराम वहीं से चिल्लाकर बोले - इधर आ, कहाँ बहता जा रहा है? तत्काल वह शव विपरीत दिशा में घूमा और घाट किनारे आ लगा। फ़िर धीरे-धीरे उठा और पूरी शक्ति बटोर कर मूकवत् खड़ा हो गया हाथ जोड़कर। कीनाराम बोले- खड़ा-खड़ा मेरा मुँह क्या देख रहा है, जा अपने घर तेरी माँ रो-रो कर पागल हो रही है। तत्काल वह दौड़ता हुआ घर की ओर भागा और अपनी माँ को जीवित होने की कथा सुना डाली। उसकी माँ को विश्वास नहीं हो रहा था वह उसी हाल में अपने बेटे को लेकर घाट कि ओर भागी। तब तक सभी लोग घाट की सीढी चढकर सड़क पर आ चुके थे। तभी कीनाराम की नज़र सामने पड़ी देखा कि वह बालक अपनी माँ के साथ भागता हुआ चला आ रहा है। कीनाराम कुछ समझते उससे पहले ही बालक की माँ आकर कीनाराम के पैरों पर गिर् पड़ी। कीनाराम ने उसे उठाया और आने का कारण पूछा। वह बोली- बाबा आपकी कृपा से मेरा पुत्र पुनः जीवित हो गयाअ इसके लिये मैं सदा आपकी ऋणी रहूँगी। लेकिन आपने इसे जीवन दान दिया है अब यह आपका है। मेरी दी हुइ जिन्दगी तो खत्म हो चुकी थी। बाबा इसे आप अपने चरणों में स्थान दीजिये। इसे मैं आपको सौंपती हूँ। कीनाराम ने बाबा कालूराम की ओर प्रश्न भरी नज़रों से देखा। बाबा कुछ बोले नहीं बस सिर हिलाकर अपनी सहमति दे दी। आगे चलकर बाबा ने उस बालक का नाम रामजियावन रखा जो आगे चलकर एक बड़े सिद्ध अघोरी बने।
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Title
|
Kaal Paatra
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
First Edition - 2014
|
Price
|
Rs. 350.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9789384172008
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
x + 72 + 326 Pages
|
Size
|
22.5 cm x 14.5 cm
|
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buying instruction
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प्राण ऊर्जा का निस्तारण और ग्रहण श्वांस के माध्यम से ही होता है और चरम एकाग्रता द्वारा उस सूक्ष्म ऊर्जा के प्रवाह को महसूस किया जा सकता है। जब तक मन शान्त नहीं होगा चित्त शान्त नहीं होगा। वैसे तो शरीर, जीने के लिये श्वांस द्वारा प्राण ऊर्जा नैसर्गिक लेता रहता है लेकिन विशेष क्रिया द्वारा इसकी ग्रहण व प्रक्षेपण शक्ति असीम हो जाती है। श्वांस लेने कि क्रिया जितनी मन्द होगी छोड़ने की क्रिया उससे भी मन्द होनी चाहिये। श्वांस का लय ही इस क्रिया की मूल कुंजी है।
सर्वप्रथम बौद्ध लामा ने श्वांस-प्रश्वांस को लयबद्ध करने का अभ्यास कराया। इसके दौरान ही मैं असीम शान्ति का अनुभव करने लगा था। उन्होंने कहा - आगे इसी तरह अभ्यास करते रहना। कोई समय सीमा नहीं है इस अभ्यास में। जब श्वांस-प्रश्वांस लयबद्ध हो जायेगी इसका तुम स्वयं अनुभव करने लगोगे लामा बोले। मुझे तो प्रथम बार में ही सम्पूर्ण शरीर में ऊर्जा का विशेष अनुभव हो रहा था। बौद्ध गुम्फा (मन्दिर) के दाहिने ओर एक वट वृक्ष की ओर इशारा करते हुए लामा बोले उस वृक्ष को देख रहे हो। मैंने कहा हाँ। आओ वृक्ष के पास चलें। मैंने उनका अनुशरण किया। उस वट वृक्ष के चारों ओर तख्त लगे हुए थे। लामा ने इशारे से कहा कि उस तख्त पर चढ जाओ। मैंने वैसा ही किया। फिर लामा बोले - लम्बी श्वांस लो और धीरे-धीरे छोड़ो। अपने दोनों हाथों को फैलाकर वृक्ष को पकड़ो हथेली खुली रहे और मन को एकाग्र करो। वृक्ष और हथेली के बीच कुछ दूरी बनी रहे। क्योंकि अगर वृक्ष का स्पर्श करोगे तो उसके स्पर्श का अनुभव होगा उसकी ऊर्जा का नहीं। इसलिये एक इंच की दूरी आवश्यक है। उन्होंने आगे बतलाया कि अपनी लम्बी श्वांस खींच कर ध्यान लगाओ। उस श्वांस के माध्यम से ऊर्जा दाहिनी हथेली के द्वारा वृक्ष में समाहित हो रही है और बायीं हथेली के माध्यम से पूरे शरीर में शनै-शनै प्रवेश कर रही है। एक वर्तुल बनेगा। कम से कम पाँच बार इस क्रिया को दोहराओ। फिर उसी प्रकार बायीं हथेली से अपनी ऊर्जा प्रवाहित करो। फिर पाँच बार वर्तुल बनाओ, ध्यान रखना श्वांस पर पूरा नियन्त्रण रहे।
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Title
|
Tantram
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
First Edition - 2013
|
Price
|
Rs. 300.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9788190679657
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
xiv + 86+ 368 Page
|
Size
|
22 cm x 14 cm
|
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buying instruction
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चारों तरफ हरियाली, सिन्दूरी आभा लिये प्रकाश्, गेरुवे रंग के मठ-मन्दिर लेकिन सभी अपने आप में मग्न। कहीं कोई ध्वनि नहीं। नीरव वातावरण। कहीं कोई ध्यान कर रहा था तो कुछ लोग जप कर रहे थे तो एक स्थान में बहुत से युवा सन्यासी हवन कृत्य में संलग्न थे। तभी मैंने देखा कि एक तेजस्वी, सन्यासी के समीप पत्थर की शिला पर बैठा है। उस पर मृग चर्म बिछा था। पद्मासन की मुद्रा में, गैरिक वस्त्र और रुद्राक्ष की माला पहने वे तेजस्वी ध्यानस्थ बैठे थे। उनके चेहरे से अपूर्व आभा निकल रही थी। चन्दन की सुगन्ध से पूरा वातावरण दिव्य लग रहा था।
मैं बोलना चाहा पर बोल नहीं पाया। लेकिन मेरी मस्तिष्क ऊर्जा बहुत तेज हो गई थी। ऐसा लगता था कि मेरी वाणी रुक गई हो। तभी विचार के माध्यम से वार्ता करने की प्रेरणा मिल रही थी अगोचर रूप से। तभी ध्यानस्थ सन्यासी की आवाज मेरे मानसपटल में गूँजने लगी। देखा तो वे ध्यानस्थ थे लेकिन उनकी वाणी कहें या विचार सम्प्रेषण मुझे साफ-साफ अनुभूत हो रही थी। वे कह रहे थे कि मैं इस समय वैश्वानर जगत में हूँ। दिव्यैश्वरी के अनुरोध पर तुम्हे मिलने की आज्ञा दी। अगर न मिलता तो यह एक संकल्प बन जाता। फ़िर कहीं न कहीं तुमसे मिलने का प्रयोजन बनता। इच्छा हो चाहे संकल्प हो वह बन्धन का कारण बनता है। इसलिये इच्छा या संकल्प का कम से कम होना साधकों के लिये आवश्यक है। दिव्यैश्वरी ने भी ऐसा ही किया था। जगत में जितना मानव निरपेक्ष और तटस्थ रहेगा उतना ही बन्धन मुक्त होगा। इस जगत में लोग बातें करते हैं केवल विचारों के माध्यम से। जिस जगत मे तुम रहते हो वहाँ विचार शब्दों के माध्यम से वाणी द्वारा प्रकट होते हैं यहाँ ऐसा नहीं है।
....
....
....
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प्रज्ञाचक्षु बोले - अरे हाँ! एक बात तो बतलाना भूल ही गया था । वह यह कि प्राणतोषिणि क्रिया की तरह ही एक यौगिक क्रिया है 'नाड़ी बन्ध' । जिस समय वह रहस्यमयी यौगिक क्रिया सम्पन्न होती है उसी समय शरीर जिस अवस्था में रहता है - स्थिर हो जाता है। शरीर पर, मन पर, प्राण पर, काल का, समय का और आयु का प्रभाव नहीं पड़ता । शरीर जिस अवस्था में रहता है उसे अवस्था में सैंकड़ों वर्ष तक रहता है । महात्मा ने बतलाया कि पिछले तीन सौ वर्षों से वे वर्तमान शरीर में ही है । नाड़ी बन्ध के समय जैसा था वैसा ही आज भी है और अभी दो सौ वर्ष पर्यन्त ऐसा ही रहेगा । क्या आपका शरीर कभी अस्वस्थ नहीं हुआ ? नहीं ! हो ही नहीं सकता । शरीर अस्वस्थ होता है प्राण के कारण । प्राण में व्यतिक्रम उत्पन्न होने पर ही रोग व्याधि उत्पन्न होती है और जब प्राण पर काल का प्रभाव पड़ना बन्द हो जाता है तो फिर प्रश्न ही नहीं उठता अस्वस्थ होने का ।
शरीर की आवश्यकता 'अन्न' यानि भोजन है । अन्न तत्व से रक्त और और रक्त तत्व से 'वीर्य' और 'वीर्य' से शरीर का निर्माण होता है । इसलिये अन्न प्रधान है । एक सांसारिक व्यक्ति के भोजन से एक योगी का भोजन अनेक अंकों में भिन्न होता है । शरीर की अपनी माँग है । क्योंकि शरीर प्रकृति के नियमों के आधीन होता है । आप शरीर की कैसे करते हैं पूर्ति ? इच्छा शक्ति से । साधारण व्यक्ति के पास इच्छा तो है लेकिन शक्ति नहीं । एक इच्छा की पूर्ति के लिये उसे विभिन्न प्रकार के कर्म करने पड़ते हैं तब कहीं जाकर इच्छा पूर्ण होती है । योगी के पास इच्छा के साथ-साथ शक्ति भी है और वह शक्ति है अवचेतन मन की शक्ति ।
तुम चार दिन से भूखे प्यासे हो । इस आवश्यकता को कैसे पूर्ण करोगे ? कर्मों के द्वारा ही न, भोजन की सामग्री लाओगे फिर भोजन बनाओगे फिर उसे खाओगे । इस गुफा में सभी वस्तुओं का अभाव है । न भोजन की सामग्री है न ही भोजन बनाने का साधन । फिर कैसे क्या होगा ? अब देखो मेरे इच्छा शक्ति । इतना कह कर महात्मा ने मुझे नेत्र बन्द करने का आदेश दिया और जब मैंने कुछ क्षणों के बाद अपनी आँखें खोली तो आश्चर्यचकित रह गया मैं । मेरे सामने थाली में मेरे रुचि का भोजन रखा था । बाद में तो नित्य मनोनुकूल भोजन मिलने लगा मुझे । जो कुछ मैं चाहता उसकी पूर्ति महात्मा कर देते थे अपनी इच्छा शक्ति के बल पर । पूरे दो मास रहा मैं उस हिम गुफा में । इस अवधि में प्रज्ञाचक्षु से जो ज्ञानार्जन मैंने किया वह निःसन्देह महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सम्पत्ति समझी जायेगी ।
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Title
|
Awaahan
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
First Edition - 2010
|
Price
|
Rs. 350.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9788190679640
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
xxxiv + 462 Page
|
Size
|
22.5 cm x 14.5 cm
|
|
buying instruction
|
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|
Title
|
Akashcharini
(The Flying Priestess)
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
First Edition - 2007
|
Price
|
Rs. 225.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9AGAH
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
x + 278 Pages
|
Size
|
22.5 cm x 14.5 cm
|
|
buying instruction
|
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|
Title
|
Teesara Netra - Part 1
(The Third Eye - Part 1)
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
Re-print - 2008
|
Price
|
Rs. 350.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9788190679619
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
xx + 340 Pages
|
Size
|
22.5 cm x 14.0 cm
|
|
buying instruction
|
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|
Title
|
Teesara Netra - Part 2
(The Third Eye - Part 2)
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
Third Edition - 2008
|
Price
|
Rs. 350.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9788190679626
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
xvi + 32 + 464 Pages
|
Size
|
22.5 cm x 14.0 cm
|
|
buying instruction
|
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|
Title
|
Rahasya
(The Mysticism)
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
First Edition - 2008
|
Price
|
Rs. 300.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9788190679602
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
xx + 452 Pages
|
Size
|
22.5 cm x 14.5 cm
|
|
buying instruction
|
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|
Title
|
Parlok Vigyan
(The Secrets of the Next World)
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
First Edition - 2006
|
Price
|
Rs. 325.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
8OTPVH
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
xxxii + 374 Pages
|
Size
|
21.5 cm x 14.0 cm
|
|
buying instruction
|
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|
Title
|
Maaran Paatra
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
Third Edition - 2008
|
Price
|
Rs. 600.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9788190679633
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
xvi + 60 + 572 Pages
|
Size
|
22.0 cm x 14.0 cm
|
|
buying instruction
|
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|
Title
|
Abhautik Satta Me Pravesh
(Entering into Metaphysical Existence)
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
Second Edition - 2006
|
Price
|
Rs. 250.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9AGASMPH
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
xiv + 296 Pages
|
Size
|
22.5 cm x 14.0 cm
|
|
buying instruction
|
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|
Title
|
Maranottar Jeevan Ka Rahasya
(Secrets of Life After Death)
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
Second Edition - 2007
|
Price
|
Rs. 350.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9AGMJKRH
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
xiv + 53 + 384 Pages
|
Size
|
22.5 cm x 14.0 cm
|
|
buying instruction
|
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|
Title
|
Kundalini Shakti
(The Serpent Power)
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
Re-print - 2009
|
Price
|
Rs. 475.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9AGKSH
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
xxviii + 592 Pages
|
Size
|
22.5 cm x 14.0 cm
|
|
buying instruction
|
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|
Title
|
Kaaran Paatra
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
Second Edition - 2009
|
Price
|
Rs. 300.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
9AGKPH
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
x + 30 + 280 Pages
|
Size
|
22.5 cm x 14.5 cm
|
|
buying instruction
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योग की दृष्टि में नाभि बहुत ऊँचा स्थान् रखती है क्यों कि योग साधना का प्रारम्भ नाभि से ही होता है। योगीगण नाभि का विशेष ध्यान रखते हैं। यदि विचारपूर्वक देखा जाये तो योग साधना का प्रथम सोपान प्राणायाम है। योग के अनुसार नाभि प्राणों का संचयन स्थल है। यह मानव शरीर का संचालन बिन्दु है। उसी बिन्दु से प्राण ऊर्जा हृदय के माध्यम से मस्तिष्क को प्रेषित होती है। और मस्तिष्क, प्राण ऊर्जा को वायुवहा नाड़ियों के माध्यम से सारे शरीर में प्रवाहित करता है। इससे स्पष्ट है कि नाभि मनुष्य की सारी गतिविधियों का केन्द्रबिन्दु है। वह गति शारीरिक हो, मानसिक हो या हो आध्यात्मिक। यदि नाभि ऊर्जस्वित नहीं होगी और वह ऊर्जा का सम्यक प्रसारण नहीं रखती तो शारीरिक अवयवों में ऊर्जा शक्ति का ह्रास हो जायेगा और शरीर अस्वस्थ हो जायेगा। और इस कारण मन और आत्मा भी अस्वस्थ हो जायेंगे।
योगी पुरुष अपनी नाभि को सूक्ष्म प्राणायाम से ऊर्जस्वित करते हैं। नाभि के पूर्ण रूप से ऊर्जस्वित होने के बाद ही साधक हृदय केन्द्र की ओर बढते हैं। प्राणायाम द्वारा प्राण की और ध्यान द्वारा मन की होती है साधना। ध्यान जब अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर समाधि में परिवर्तित हो जाता है तो उसे परमावस्था कहते हैं और उस अवस्था में योगी की स्थिति मस्तिष्क में जिस स्थान पर होती है - वह है सोमचक्र। यदि अचानक हृदय काम करना बन्द कर दे तब भी बीस से तीस मिनट तक नाभि केन्द्र सक्रिय रहता है। इस अवधि में किसी उपचार द्वारा हृदय को पुनः सक्रिय किया जा सकता है।
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Title
|
Mritaatmaao Se Sampark
(Contacting the Souls)
|
Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
|
Language
|
Hindi
|
Publication Year:
|
First Edition - 1999
|
Price
|
Rs. 250.00 (free shipping within india)
|
ISBN
|
8171242294
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
|
viii + 220 Pages
|
Size
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22.0 cm x 14.0 cm
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buying instruction
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Title
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Vakreshwar Kee Bhairavi
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Author
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Shri Arun Kumar Sharma
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Language
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Hindi
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Publication Year:
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First Edition - 2006
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Price
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Rs. 250.00 (free shipping within india)
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ISBN
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8171244912
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Binding Type
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Hard Bound
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Pages
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viii + 204 Pages
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Size
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22.5 cm x 14.5 cm
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buying instruction
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उस समय सेवड़ासिंघा अपने महल की छत पर ध्यानस्थ बैठा हुआ था। उसको क्या पता था कि उसकी मृत्यु सामने आ रही है। उसने अपनी ओर आते हुए विशाल शिलाखण्ड की सनसनाती हुई आवाज सुनी तो आँखें खोल कर देखा। वह पल भर में समझ गया कि मृत्यु सिर पर आ चुकी है। अपनी तन्त्रविद्या से उस विशाल शिलाखण्ड को रोकने का प्रयास भी किया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। हवा में चक्कर काटता हुआ शिलाखण्ड आया और तीव्र गति से गिर पड़ा सेवड़ासिंघा के ऊपर। उसके मुँह से एक दर्दनाक चीख निकली। मरते-मरते शाप दिया उसने - रानी रत्नावली, तुमने छल से मारा है मुझे। मैं अपनी तन्त्र साधना का उपयोग करते हुए शाप देता हूँ कि तुम्हारा यह नगर कल का प्रातःकाल न देख सकेगा। कोई प्राणी नहीं बचेगा इस नगर का। कल के बाद इस नगर में कभी कोई नहीं रह सकेगा।
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Title
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Tibet Kee Veh Rahasyamayee Ghaati
(The Mysterious Valley of Tibet)
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Author
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Shri Arun Kumar Sharma
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Language
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Hindi
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Publication Year:
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First Edition - 1999
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Price
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Rs. 250.00 (free shipping within india)
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ISBN
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8171242308
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Binding Type
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Hard Bound
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Pages
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viii + 192 Pages
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Size
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22.0 cm x 14.0 cm
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buying instruction
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Title
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Vehe Rahasyamaya Kaapalik Math
(The Mysterious Kapalik Shrine)
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Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
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Language
|
Hindi
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Publication Year:
|
First Edition - 1999
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Price
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Rs. 225.00 (free shipping within india)
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ISBN
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8171242227
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Binding Type
|
Hard Bound
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Pages
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viii + 204 Pages
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Size
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22.5 cm x 14.0 cm
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buying instruction
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Title
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Vehe Rahasyamay Sanyasi
(The Mysterious Saint)
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Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
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Language
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Hindi
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Publication Year:
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First Edition - 2007
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Price
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Rs. 275.00 (free shipping within india)
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ISBN
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8OTWRKMH
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Binding Type
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Hard Bound
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Pages
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xxxviii + 332 Pages
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Size
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22.0 cm x 14.0 cm
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buying instruction
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गुफा काफी लम्बी चौड़ी थी। प्रवेश करते ही ऐसा लगा जैसे संसार से अलग हो गया है मेरा अस्तित्व और मैं किसी अनजाने अपरिचित स्थान में आ गया हूँ। सोचा गुफा के भीतर अन्धकार होगा, लेकिन वहाँ चारों तरफ एक हल्का-हल्का शुभ्र प्रकाश फैला हुआ था। वह प्रकाश कहाँ से आ रहा था? समझ में नहीं आया। गुफा की दीवारों में छोटे-छोटे छेद थे जिनमें से ताजी बरसाती हवा भीतर आ रही थी। कच्ची जमीन पर खजूर की चटाईयाँ बिछी हुई थीं और उनके ऊपर कम्बल। एक और मिट्टी के बर्तन थे और एक गगरी थी जिसमें पानी भरा हुआ था। इनके अलावा और कुछ नहीं। बैठ गया मैं कम्बल पर। बड़ा सुख मिला। रत्नकल्प बोले - बाबा! आप भूखे प्यासे होंगे काफी थके हारे भी होंगे। कहिये क्या करूँ आपके लिये बाबा?
यह सुन कर मन ही मन सोचने लगा - मेरे लिये इस बीहड़ निर्जन प्रान्त में क्या करेगा बेचारा यह सन्यासी। शायद मेरे मन की बात समझ गया रत्नकल्प। मेरी ओर देखकर एक बार मुस्कुराया ओर उसकी रहस्यमयी मुस्कराहट के साथ ही घुप अन्धेरा छा गया एकबारगी गुफा में। हे भगवान्! यह क्या? कुछ बोलने ही वाला था कि तभी पहले जैसे शुभ्र प्रकाश से भर उठी पूरी गुफा। मैंने सिर घुमा कर चारों ओर देखा। गुफा का वातावरण बदल चुका था। जमीन पर सुन्दर कालीन, शानदार पलंग, चमचमाते बर्तन, आवश्यक वस्त्र, दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएँ और थालियों में सजे ताजे फल और गरम गरम भोजन। अवाक् और स्तब्ध रह गया मैं - यह सब कुछ देखकर।
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Title
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Yog Tantrik Saadahana Prasang
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Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
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Language
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Hindi
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Publication Year:
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First Edition - 2011
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Price
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Rs. 275.00 (free shipping within india)
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ISBN
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9788190679671
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Binding Type
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Hard Bound
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Pages
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xxxxviii + 332 Pages
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Size
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22 cm x 15 cm
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buying instruction
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अन्तरंग साधना भूमि में छः प्रकार का दीक्षा क्रम है जिनमें प्रमुख है शक्तिपात दीक्षा। इसी दीक्षा को प्राप्त कर साधक अन्तरंग भूमि में प्रवेश करता है। शक्तिपात दीक्षा तान्त्रिक साधना की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दीक्षा है। साधक के बहिरंग साधना में पूर्ण पारंगत होने के पूर्व संस्कार के अनुसार यथासमय सदगुरु स्वयं उपस्थित होकर यह दीक्षा प्रदान करते हैं। दीक्षा के पूर्व सदगुरु शिष्य के स्थूल शरीर को विशेष तान्त्रिक क्रिया द्वारा भाव शरीर और शूक्ष्म शरीर से पृथक करते हैं और दोनों के साथ अपने भाव और् शूक्ष्म शरीर का सम्बन्ध स्थापित करते हैं। तदनंतर क्रम से दोनों का उल्लंघन कर मनोमय शरीर से तादात्म्य स्थापित करते हैं और उसी में शक्तिपात दीक्षा प्रदान करते हैं। तन्त्र की बहिरंग साधना दीक्षा गृहण करने के पश्चात मनोमय शरीर से शुरु होकर निर्वाण शरीर में जाकर समाप्त होती है। तात्पर्य यह है कि अन्तरंग साधना साधना क्रम से चार शरीरों के माध्यम से सम्पन्न होती है। साधना काल में स्थूल की तरह सूक्ष्म शरीर भी निष्क्रिय रहता है, सक्रिय रहता है केवल मनोमय शरीर। इसी शरीर द्वारा तन्त्र की सर्वोच्च और गुह्य साधना, बिन्दु साधना भी सम्पन्न होती है।
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Title
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Parlok Ke Khulate Rahasya
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Author
|
Shri Arun Kumar Sharma
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Compilation
|
Shri Manoj Sharma
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Language
|
Hindi
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Publication Year:
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First Edition - 2012
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Price
|
Rs. 300.00 (free shipping within india)
|
ISBN
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9788190679688
|
Binding Type
|
Hard Bound
|
Pages
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iv + 75 + 332 Pages
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Size
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22 cm x 14 cm
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buying instruction
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बाबा ने सिर पर ढके कम्बल पर हाथ रखा। एक पल में ऐसा लगा जैसे मैं चेतना शून्य हो गया। कुछ देर बाद ऐसा लगा जैसे बाबा ने मेरे सिर सिर के ऊपर से हाथ हटा दिया। चारों ओर कोलाहल की आवाज आ रही थी। मैंने जब अपने ऊपर से कम्बल हटाया तो देखा कि मैं हरिद्वार के घाट की सीढी पर बैठा हूँ और मृगचर्म भी था। आज भी वह मृगचर्म मेरे मन्दिर में सुरक्षित है। उसी पर बैठ कर आज भी साधना करता हूँ। आज अस्सी की उम्र पार कर रहा हूँ लेकिन वह घटना आज भी मेरे मानसपटल पर अंकित है। ऐसी कौन सी विद्या अथवा शक्ति थी कि जिस पहाड़ी में पहुँचने तक मुझे सात दिन लगे थे उसी पहाड़ी से पल भर में जिस स्थान से चला था वहीं आ गया....।
प्राणतत्त्व अति महत्वपूर्ण है। इसकी सत्ता स्वतन्त्र है।शरीर पाँच तत्त्वों से निर्मित है। प्राणतत्त्व के माध्यम से आत्मतत्त्व से उनका सम्बन्ध बनता है और शरीर हो जाता है चैतन्य जिसे हम जीवन कहते हैं। पंचतत्त्वों का क्रमशः क्षय होता है। पंचतत्त्व निर्मित शरीर का क्षय होता है, परिवर्तन नहीं। लेकिन प्राणतत्त्व के बीच से हटते ही आत्मतत्त्व अलग हो जाता है शरीर से। इसी का नाम मृत्यु है।
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